मानस मा प्रयाग

तीर्थराज प्रयाग मा कुंभ मेला चलत हावय।एक महिना तक ये मेला चलथे। छत्तीसगढ़ मा एक पाख के पुन्नी मेला होथय। ये बखत यहू हा प्रयाग हो जाथय। तुलसीदास बाबा हा तीर्थराज प्रयाग के महत्तम ला रामचरित मानस मा बने परिहाके बताय हे।मानस के रचना करत शुरुआत मा जब बाबा तुलसी वंदना करधँय तब साधु संत के वंदना अउ उँखर गुनगान करथँय।संत मन के समाज हा कल्याणकारी असीस देवइया अउ आनंद देवइया होथँय।संसार मा जौन जगा साधु संत सकलाथँय उही जगा मा सक्षात् तीर्थराज प्रयागराज हा खुदे आ जाथय। इही ला तुलसीदास हा मानस मा गढ़े हावय-

मुद मंगल मय संत समाजू, जो जग जंगम तीरथराजू।

अइसने प्रयाग के विसय मा बतावत कहिथँय कि प्रयाग मा रामकथा, रामभक्ति, शिवभक्ति अउ ब्रम्हभक्ति होथँय।इही तीनों हा गंगा, जमुना अउ सरसती के त्रिवेणी संगम आवँय।जिहाँ ये तीनों मिल जाथँय उही हा प्रयाग बन जाथय।अइसे तो रामचरित मानस हा घलाव प्रयाग आवय।जौन एकर पाठ करथे,कथा सुनथे, कथा कहिथे ओला प्रयाग के त्रिवेणी संगम के नहाय के पुण्य मिल जाथय।
बाबा तुलसी कहिथँय कि प्रयाग मा भरद्वाज मुनि के बसेरा हावय।जिहाँ रामकथा रोजेच होथय।संत मन एला अइसे घलाव कहि सकथन कि जिहाँ रामकथा होथय उही प्रयाग हो जाथय। मानस मा लिखाय हे-

भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा,तिन्हहिं राम पद अति अनुरागा।

तुलसीदास जी मानस मा बताय हावय कि जब माघ महिना मा सुरुज देवता हा मकर राशि मा आतँय तब सब देवी देवता, राक्षत, किंनर अउ मनखे मन खलाकुजर के त्रिवेणी संगम मा नहाय बर आथँय।ओकरे सेती जिहाँ रामचरित मानस के कथा होथय उहाँ घलाव सबो देवी देवता मन ला बलाय जाथय।नवग्रह मन ला आसन देके बइठारे जाथय।मानस मा तुलसीदास लिखे हावय-

माघ मकर गत रबि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई।
देव दनुज किंनर नर श्रेणी, सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी।

जौन मन माघ महिना मा प्रयाग मा आथँय ओमन अक्षयवट ला छुथँय। त्रिवेणी माधव के पूजा पाठ करथँय अउ असीस पाथँय।तीर्थराज प्रयाग मा जतका साधू संत मन आथँय ओमन भरद्वाज मुनि के आश्रम मा रहिथँय।पहट बिहनिया गंगा मा नहाथँय, पाछू भगवान के कथा कहिथँय सुनथँय अउ सत्संग करथँय।

जहाँ होई मुनि रिषय समाजा,जाहि जे मज्जन तीरथराजा।
मज्जहिं प्रात समेत उछाहा, कहहिं परस्पर हरिगुन गाहा।।

एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं,पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं।
प्रति संबत अति होई अनंदा , मकर मज्जि गवनहिं मुनिवृंदा।

बाबा तुलसीदास कहितँय- हर बच्छर साधू संत मन सकलाथँय।माघ महिना भर बिहनिया नहाथे,यज्ञ, पूजा करके कथा सुनथँय।पाछू सब अपन अपन आश्रम मा चल देथँय।

संकलन
हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, जिला गरियाबंद

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